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*महर्षि मेँहीँ चालीसा*

जय गुरु! 

चालीसा

दोहा 
जय मेँहीँ भवदुख हरण, करन बोध उजियार।
सुखनिधान कल्याणमय, नमस्कार बहुबार।।1।।
ज्ञान हीन निज मानिकै, धरौं शीश पदकंज।
करुणाकर हे सन्तवर, दयावन्त सुख पुंज।।2।।


चौपाई
जय मेँहीँ भव सिन्धु सुखायक।
काम कोह मद मोह नशायक।।1।।
देवी नन्दन त्रास विभंजन।
त्रिविध ताप अरु पाप निकंदन।।2।।
कीरति अमित जगत महँ छायो।
चरित पुनीत सुजन मन भायो।।3।।
बबुजन लाल दास पितु नीका।
कुल कायस्थ सुनिर्मल जी का।।4।।
जनकवती तुअ मातु कहाये।
मझुवा टोला जन्म सुहाये ।।5।।
शुभ्र गात अनुपम गुणराशी।
ज्ञानसिन्धु अन्तर मल नाशी।।6।।
ब्रह्मदूत सुन्दर सुखधामा।
परमधीर मेँहीँ शुभनामा।।7।।
बालचरित कीन्हों कछु काला।
लीन्हों तपसी वेष विशाला।।8।।
सदा विराग राग नहिं जग सों।
विलग होइ नहिं श्रुति के मग सों।।9।।
कीन्हों भ्रमण जगत हित लागी।
दीन्हों ज्ञान परम विरहागी।।10।।
प्रथमहिं दरिया पन्थ पधारे।
गुरु भे रामानन्द अचारे ।।11।।
दूजो महँ सन्तनमत भायो।
सतगुरु देवी दास कहायो ।।12।।
गुहा ग्राम महँ लिये बनाये।
प्रविशि ताहि महँ ध्यान लगाये।।13 ।।
अरु केते थल साधन कीन्हा।
अन्त गंगतट कन्दर चीन्हा ।।14।।
इहाँ बैठि तप कीन्ह अपारा।
ब्रह्म ज्योति निजघट में बारा।।15।।
अनुपम अचरज जोत लखायो।
सूरत अमृतनाद चखायो ।।16।।
अनहद शब्द कियो झनकारा।
रोम-रोम धुन रारंकारा।।17।।
एक ओम धुन सुर्त समायो।
परमातम लखि जगत भुलायो।।18।।
अविचल पद महँ लीन्ह बसेरा।
देह गेह सों भये निबेरा।।19 ।।
निर्मल नाम जगत महँ छायो।
सकल देव मिलि गुण गन गायो।।20।।
उभय प्रबोध सुधामय बचना।
कीन्हों अमित ग्रन्थ की रचना।।21।।
कीन्हें चरित सुजन मन हारी।
दीन्हें भक्तन्ह भक्ति पियारी।।22।।
केते जन निज रूप लखायो।
अरु केते घट सुधा चखायो।।23।।
केते दीन्ह भक्ति कै दाना।
हरि लीन्हों केते अभिमाना।।24।।
जाइ विदेश दरस दै आये।
सत्याचरण सुजन मन भाये।।25।।
यति कै वेष देह पर सोहैं ।
लखत रूप सज्जन मन मोहैं।।26 ।।
रघुपति महिमा सुनें सदाई।
सन्त वचन सों प्रीति महाई।।27।।
देवें जन उपदेश निरन्तर ।
कृपा दृष्टि हर मल अभिअन्तर।।28।।
कीन्हें जग उपकार घनेरे ।
ज्ञान हीन उर भयो उजेरे ।।29।।
केते अधम मन्दमति कामी।
तारे तिन्ह कहँ अन्तर्यामी।।30।।
झूठ कपट मत्सर मद गेहा।
उद्धारे प्रभु सहित सनेहा ।।31।।
जे जन सुनें सुकीरत नीता।
ते नहिं होय काल भयभीता।।32।।
जे कर सहज ध्यान नित नेमा।
तिन्ह कर होइ सदा शुभ क्षेमा।।33।।
संकट कटे जपे शुभ नामा।
मेँहीँ वर सुन्दर सुखधामा।।34।।
जो जन कर तुअ याद सदाई।
तिन्हके सकल पाप जल जाई।।35।।
पालें जो इन्ह के उपदेशा।
तिनके मिटें जन्म कृत क्लेशा ।।36 ।।
जय जय जय अमरापुर वासी।
करो कृपा सन्तत सुखराशी।।37 ।।
भव बन्धन सों दास छुड़ावहु।
वन्दीछोड़ विरद सम्भारहु ।।38 ।।
होइ मनोरथ सिद्ध सदाई।
जे मेँहीँ चालीशा गाई ।।39 ।।
पढ़े नारि नर अति मन लाई।
'व्यास' होइ जगदीश सहाई।।40।।


दोहा
जय मेँहीँ भव रुज दलन, करुणाकर सुखमूल।
विमल ज्ञान वैराग्य निधि, हरें त्रिविध भवशूल।।3।।
पतित उधारन देव तू, देवें नित सतज्ञान।
षट रिपु नाश करन हरि, पावें जन मन त्राण।।4।।

।। इति चालीसा।।

सद्गुरु विनय

बूड़त भक्त उबारि लियो प्रभु, नाम सुपावन भे तव तेरो।
मेरिहि बेर फिरो तव लोचन, दर्शन हेतु कियो अति देरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
बारहिंबार भ्रमे चहुँ खानि, सहे दुख संसृति दाह दरेरो।
कामहुँ क्रोध भये झष नक्र, गहे पग जालिम जोर बड़ेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
चंचल चित्त को चक्र चलो नित, होत गुणावन मान घनेरो।
मत्सर मोह फिरे सब खोह, लहे नहिं टोह अदंभ अनेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
कामिनि कूकरि ह्वै बड़ि भूखरि,सूकरि प्राण हरो सब केरो।
दीन दयाल कृपाल दयानिधि, डाकिनि के करु नाथ अहेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो.....
लोभ अपार महा विकरार, प्रहार करो मद जालिम शेरो।
आइ अविद्यहिं घेरि लियो अब, धाइधरो तम कूपहिं गेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
त्रिगुण फाँस कियो मम नाश,अनाश अजा सब जीवन्ह घेरो।
पाप प्रपंच रचो बड़ जोर, मरोड़ लियो भुज दंड सबेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
देहन रोग दियो बहु सोग, वियोग कियो शुभ मारग मेरो।
इन्द्रिन नारि चतुर्दश भारि, दियो मति जारि बिगारि करेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
झूठहिं जारि महाछल धारि, अनाड़ि असोच पड़ो जग डेरो।
चोरि नशा गरिसा अरिसा, धरि मारत जीवन को नहिं हेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
केतिक पाप कियो जग बाप, लहे सब शाप न जाइ गनेरो।
कीन्ह प्रभू अपराध अनंतहि, पै गुरु देवन्ह कै दृढ़ चेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
गंग सुपावन पाप दहावन, धीर धरावन मन्तर तेरो।
नाहिं जप्यो अस नाम महाधन, मूढ़ न मोसम आन बड़ेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
काशिसु तूल सुमंगल मूल, गुरू पग धूल दहे अघ ढेरो।
नाहिं गहे कधि पायन्ह पंकज, कूर सहे नहिं आनक खेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
रूप तिहार न आन निहार, करे सुविहार सुदासन तेरो।।
मूढ़ न ध्यान धरो सपनो महुँ, कामिनि कंचन में चित गेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
दामिनि जोत सदा उर होत, सबै सुध खोत जो जाय निहेरो।
कोटिन्ह विद्युत तार असंखन, मोतिन माल न जाय गनेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
तत्वन्ह रंग करे चित चंग, अनंग मरे रवि चन्दर हेरो।
नाहिं धर्यो अस ध्यान अमोलक,कोटिन्ह पाप कियो खलजेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
शंख असंख बजे गलि बंक, अरू गज घंट न जाय सुनेरो।
दुंदुभि नाद महा विसमाद, हरे सुप्रमाद न चित्त चलेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
नारद वीण महा सुप्रवीण, यकीन भयो सुनि शारद टेरो।
बाजत मोहन की मुरली, सुरली सुनि सूरति अन्तर प्रेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
बादल की धुनि घोर करोड़, मरोड़ दियो मन चंचल मेरो।
बाजत राग छतीस अतीस, सुनी भइ सूरति राम को चेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
एकहिं तार करे झनकार, भये अविकार मिले सुख ढेरो।
कर्म विकर्म अकर्म भये सब, द्वन्द्वरु द्वैत रहे नहिं नेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
शारद शेष महेश गणेश, सुरेश दिनेश न तन्तर प्रेरो।
नाहिं रमेश ब्रजेश निशेष, अशेष भयो लखि सूरति तेरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....
हे गुरुदेव लखें जन भेव, करें भव खेव समर्थ घनेरो।
जौ नहिं हेरहु व्यासन्ह' को प्रभु, खाइ मरौं विष लाग न देरो।।
जानत हौं सब लोकन्ह में गुरु पाप विमोचन नाम तिहारो....

सद्गुरु की आरती

आरति सद्गुरुवर महान की।
धीर धर्म सत शिष्य प्राण की।।
काम कोह मद मोह निवारण।
जन अन्तर सद्ज्ञान विकाशन।
आतमबोध प्रकाश करावन।
तुरियापद अविकल्प ध्यान की।। आरति....
स्रुति पुराण शुचि मर्म बतावन।
कर्म अकर्म विकर्म प्रकाशन।
जन्मार्जित अघपुँज हराशन।
'सुकृत सिन्धु विज्ञान खान की।। आरति.....
त्रिविध ताप अभिशाप मिटावन।
भव भ्रमन्त जन पन्थ गहावन।
शोक द्रोह दृढ़ कोट ढहावन।
निर्मलतम् अतिशय अमान की।। आरति....
पद पाथोज विमल मति कारिणि।
चंचलता कटुता मन हारिणि।
मेँहीँवर मुख कमल सुहावनि।
'व्यास' विश्व जननी सुत्राण की।। आरति…..


।। इति शुभम्।।

श्री सद्गुरु महाराज की जय!